Tuesday, 11 February 2020
ठुमक चलत रामचंद्र
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां ..
किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय .
धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां ..
अंचल रज अंग झारि विविध भांति सो दुलारि .
तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियां ..
विद्रुम से अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर .
सुभग नासिका में चारु लटकत लटकनियां ..
तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारविंद .
रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां ..
मदन मोहन सघन वन में मधुर बंसी बजाते हैं
मदन मोहन सघन वन में मधुर बंसी बजाते हैं (२)
कभी माखन कभी मिसरी कभी दाढ़ियाँ खिलाते हैं।मदन मोहन सघन वन में मधुर बंसी बजाते हैं
कभी राधा कभी रूक्मिण कभी गोपियाँ रिझाते हैं।
मदन मोहन सघन वन में मधुर बंसी बजाते हैं
कभी तोसक कभी कम्बल, कभी चादर बिछाते हैं।
मदन मोहन सघन वन में मधुर बंसी बजाते हैं।
अयि गिरिनन्दिनि
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
राम स्वरूप तुम्हार
राम स्वरूप तुम्हार
बचन अगोचर बुद्धिपर
अबिगत अकथ अपार
ने दिनेति नित निगम कह
राम स्वरूप तुम्हार.
सुनहु राम अब कहउँ निकेता .
जहाँ बसहु सिय लखन समेता.
जिन्हके श्रवन समुद्र समाना
कथा तुम्हारी सुभग सरि नाना.
भरहिं निरंतर होहिं न पूरे .
तिन्हके हिय तुम कहुँ गृह रूरे.
लोचन चातक जिन्ह करि राखे .
रहहिं दरश जलधर अभिलाषे.
तिन्हके हृदय सदन सुखदायक .
बसहु बंधु सिय सह रघुनायक.
जस तुम्हारी मानस बिमल
हंसिनि जीहा जासू.
मुकुताहल गुन गन चुनइ राम बसहु हियतासु.१२८.
प्रभु प्रसाद शुचि सुभग सुबासा .
सादर जासु लहइ नित नासा.
तुम्हहि निवेदित भोजन करहीं .
प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं.
कर नित करहिं राम पद पूजा .
राम भरोस हृदयँ नहीं दूजा.
चरन राम तीरथ चलि जाहीं .
राम बसहू तिन्हके मन माहीं.
सबु करि मागहिं एक फ़लु राम चरन रति होऊ.
तिन्ह कें मन मंदिर बसहु सिय रघुनंदनदोउ.१२९.
काम कोह मद मान न मोहा .
लोभ न छोभ न राग न द्रोहा.
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया .
तिन्ह कें हृदय बसहुरघुराया.
कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी .
जागत सोवत सरन तुम्हारी.
तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं .
राम बसहु तिन्हके मन माहीं.
स्वामी सखा पित मात गुर जिन्हके सब तुम तात.
मन मंदिर तिन्हके बसहु सिय समेत दोऊभ्रात.१३०...
गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा .
जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा.
राम भगत प्रिय लागहिं जेही .
तेहि उर बसहु सहित बैदेही.
जाति पाति धनु धरम बड़ाई .
प्रिय परिवार सदन सुखदाई.
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई .
तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई.:
जाहि न चाहिअ कबहूँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु.
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु. १३१
बचन अगोचर बुद्धिपर
अबिगत अकथ अपार
ने दिनेति नित निगम कह
राम स्वरूप तुम्हार.
सुनहु राम अब कहउँ निकेता .
जहाँ बसहु सिय लखन समेता.
जिन्हके श्रवन समुद्र समाना
कथा तुम्हारी सुभग सरि नाना.
भरहिं निरंतर होहिं न पूरे .
तिन्हके हिय तुम कहुँ गृह रूरे.
लोचन चातक जिन्ह करि राखे .
रहहिं दरश जलधर अभिलाषे.
तिन्हके हृदय सदन सुखदायक .
बसहु बंधु सिय सह रघुनायक.
जस तुम्हारी मानस बिमल
हंसिनि जीहा जासू.
मुकुताहल गुन गन चुनइ राम बसहु हियतासु.१२८.
प्रभु प्रसाद शुचि सुभग सुबासा .
सादर जासु लहइ नित नासा.
तुम्हहि निवेदित भोजन करहीं .
प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं.
कर नित करहिं राम पद पूजा .
राम भरोस हृदयँ नहीं दूजा.
चरन राम तीरथ चलि जाहीं .
राम बसहू तिन्हके मन माहीं.
सबु करि मागहिं एक फ़लु राम चरन रति होऊ.
तिन्ह कें मन मंदिर बसहु सिय रघुनंदनदोउ.१२९.
काम कोह मद मान न मोहा .
लोभ न छोभ न राग न द्रोहा.
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया .
तिन्ह कें हृदय बसहुरघुराया.
कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी .
जागत सोवत सरन तुम्हारी.
तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं .
राम बसहु तिन्हके मन माहीं.
स्वामी सखा पित मात गुर जिन्हके सब तुम तात.
मन मंदिर तिन्हके बसहु सिय समेत दोऊभ्रात.१३०...
गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा .
जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा.
राम भगत प्रिय लागहिं जेही .
तेहि उर बसहु सहित बैदेही.
जाति पाति धनु धरम बड़ाई .
प्रिय परिवार सदन सुखदाई.
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई .
तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई.:
जाहि न चाहिअ कबहूँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु.
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु. १३१
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